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16:08, 12 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

आधा घंटा
चुरा लिया है मैंने सुबह के समय में
समाचार-पत्र पढ़ने के लिए

एक घंटा चुरा लिया है मैंने
दोपहर की कार्यावधि के बीच से
कहानियों को पढ़ने के लिए

पन्द्रह मिनट और चुरा लिए हैं मैंने
अपनी नींद से
कविताओं के लिए

इस तरह
पंखे की तरह दौड़ती हुई ज़िन्दगी में से
प्रतिदिन चुरा लेता हूँ मैं
पौने दो घंटे क़िताबों के लिए

इन पौने दो घंटे ही
रहता हूँ मैं मनुष्य
बाक़ी समय पंखा, रेलगाड़ी, हवाई जहाज़, कंप्यूटर
और ई-मेल में तब्दील रहता हूँ
एक गंतव्य से दूसरे
और दूसरे से फिर-फिर पहले की तरफ़
दौड़ लगाते हुए