भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"स्वाधीनता के साधना पीठ / अटल बिहारी वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अटल बिहारी वाजपेयी |संग्रह=न दैन्यं न पलायनम् / अटल बिह...) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=न दैन्यं न पलायनम् / अटल बिहारी वाजपेयी | |संग्रह=न दैन्यं न पलायनम् / अटल बिहारी वाजपेयी | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | अपने आदर्शों और विश्वासों | + | <poem> |
− | के लिए काम करते-करते, | + | अपने आदर्शों और विश्वासों |
− | मृत्यु का वरण करना | + | के लिए काम करते-करते, |
− | सदैव ही स्पृहणीय है। | + | मृत्यु का वरण करना |
− | किन्तु | + | सदैव ही स्पृहणीय है। |
− | वे लोग सचमुच धन्य हैं | + | किन्तु |
− | जिन्हें लड़ाई के मैदान में, | + | वे लोग सचमुच धन्य हैं |
− | आत्माहुति देने का | + | जिन्हें लड़ाई के मैदान में, |
− | अवसर प्राप्त हुआ है। | + | आत्माहुति देने का |
− | शहीद की मौत मरने | + | अवसर प्राप्त हुआ है। |
− | का सौभाग्य | + | शहीद की मौत मरने |
− | सब को नहीं मिला करता। | + | का सौभाग्य |
− | जब कोई शासक | + | सब को नहीं मिला करता। |
− | सत्ता के मद में चूर होकर | + | जब कोई शासक |
− | या, | + | सत्ता के मद में चूर होकर |
− | सत्ता हाथ से निकल जाने के भय से | + | या, |
− | भयभीत होकर | + | सत्ता हाथ से निकल जाने के भय से |
− | व्यक्तिगत स्वाधीनता और स्वाभिमान को | + | भयभीत होकर |
− | कुचल देने पर | + | व्यक्तिगत स्वाधीनता और स्वाभिमान को |
− | आमादा हो जाता है, | + | कुचल देने पर |
− | तब | + | आमादा हो जाता है, |
− | कारागृह ही स्वाधीनता के | + | तब |
+ | कारागृह ही स्वाधीनता के | ||
साधना पीठ बन जाते हैं। | साधना पीठ बन जाते हैं। | ||
+ | </poem> |
00:10, 13 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
अपने आदर्शों और विश्वासों
के लिए काम करते-करते,
मृत्यु का वरण करना
सदैव ही स्पृहणीय है।
किन्तु
वे लोग सचमुच धन्य हैं
जिन्हें लड़ाई के मैदान में,
आत्माहुति देने का
अवसर प्राप्त हुआ है।
शहीद की मौत मरने
का सौभाग्य
सब को नहीं मिला करता।
जब कोई शासक
सत्ता के मद में चूर होकर
या,
सत्ता हाथ से निकल जाने के भय से
भयभीत होकर
व्यक्तिगत स्वाधीनता और स्वाभिमान को
कुचल देने पर
आमादा हो जाता है,
तब
कारागृह ही स्वाधीनता के
साधना पीठ बन जाते हैं।