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"फूल और काँटा / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’" के अवतरणों में अंतर
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+ | एक ही पौधा उन्हें है पालता | ||
+ | रात में उन पर चमकता चांद भी, | ||
+ | एक ही सी चांदनी है डालता । | ||
− | + | मेह उन पर है बरसता एक सा, | |
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− | + | पर सदा ही यह दिखाता है हमें, | |
− | + | ढंग उनके एक से होते नहीं । | |
− | + | छेदकर काँटा किसी की उंगलियाँ, | |
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− | + | भँवर का है भेद देता श्याम तन । | |
− | + | फूल लेकर तितलियों को गोद में | |
− | + | भँवर को अपना अनूठा रस पिला, | |
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− | + | है सदा देता कली का जी खिला । | |
− | + | है खटकता एक सबकी आँख में | |
− | + | दूसरा है सोहता सुर शीश पर, | |
− | + | किस तरह कुल की बड़ाई काम दे | |
− | + | जो किसी में हो बड़प्पन की कसर । | |
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− | है खटकता एक सबकी आँख में | + | |
− | दूसरा है सोहता सुर शीश पर, | + | |
− | किस तरह कुल की बड़ाई काम दे | + | |
− | जो किसी में हो बड़प्पन की कसर ।< | + |
00:22, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण
हैं जन्म लेते जगह में एक ही,
एक ही पौधा उन्हें है पालता
रात में उन पर चमकता चांद भी,
एक ही सी चांदनी है डालता ।
मेह उन पर है बरसता एक सा,
एक सी उन पर हवाएँ हैं बहीं
पर सदा ही यह दिखाता है हमें,
ढंग उनके एक से होते नहीं ।
छेदकर काँटा किसी की उंगलियाँ,
फाड़ देता है किसी का वर वसन
प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर,
भँवर का है भेद देता श्याम तन ।
फूल लेकर तितलियों को गोद में
भँवर को अपना अनूठा रस पिला,
निज सुगन्धों और निराले ढंग से
है सदा देता कली का जी खिला ।
है खटकता एक सबकी आँख में
दूसरा है सोहता सुर शीश पर,
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर ।