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"द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र!
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हे स्त्रस्त ध्वस्त! हे शुष्क शीर्ण!
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हिम ताप पीत, मधुमात भीत,
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तुम वीतराग, जड़, पुराचीन!! 
  
द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र!<br>
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निष्प्राण विगत युग! मृत विहंग!  
हे स्त्रस्त ध्वस्त! हे शुष्क शीर्ण!<br>
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जग-नीड़, शब्द औ\' श्वास-हीन,  
हिम ताप पीत, मधुमात भीत,<br>
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च्युत, अस्त-व्यस्त पंखों से तुम  
तुम वीतराग, जड़, पुराचीन!!<br><br>
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झर-झर अनन्त में हो विलीन!
  
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कंकाल जाल जग में फैले
जग-नीड़, शब्द औ\' श्वास-हीन,<br>
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फिर नवल रुधिर,-पल्लव लाली!
च्युत, अस्त-व्यस्त पंखों से तुम<br>
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प्राणों की मर्मर से मुखरित
झर-झर अनन्त में हो विलीन!<br><br>
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जीव की मांसल हरियाली!
  
कंकाल जाल जग में फैले<br>
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मंजरित विश्व में यौवन के  
फिर नवल रुधिर,-पल्लव लाली!<br>
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जगकर जग का पिक, मतवाली  
प्राणों की मर्मर से मुखरित<br>
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निज अमर प्रणय स्वर मदिरा से  
जीव की मांसल हरियाली!<br><br>
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भर दे फिर नव-युग की प्याली!  
 
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मंजरित विश्व में यौवन के<br>
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जगकर जग का पिक, मतवाली<br>
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निज अमर प्रणय स्वर मदिरा से<br>
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भर दे फिर नव-युग की प्याली!<br>
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00:56, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण

द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र!
हे स्त्रस्त ध्वस्त! हे शुष्क शीर्ण!
हिम ताप पीत, मधुमात भीत,
तुम वीतराग, जड़, पुराचीन!!

निष्प्राण विगत युग! मृत विहंग!
जग-नीड़, शब्द औ\' श्वास-हीन,
च्युत, अस्त-व्यस्त पंखों से तुम
झर-झर अनन्त में हो विलीन!

कंकाल जाल जग में फैले
फिर नवल रुधिर,-पल्लव लाली!
प्राणों की मर्मर से मुखरित
जीव की मांसल हरियाली!

मंजरित विश्व में यौवन के
जगकर जग का पिक, मतवाली
निज अमर प्रणय स्वर मदिरा से
भर दे फिर नव-युग की प्याली!