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|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जग के उर्वर आँगन में<br>बरसो ज्योतिर्मय जीवन!<br>बरसो लघु लघु तृण तरु पर<br>हे चिर अव्यय, चिर नूतन!<br>बरसो कुसुमों के मधु बन,<br>प्राणो में अमर प्रणय धन;<br>स्मिति स्वप्न अधर पलकों में<br>उर अंगो में सुख यौवन!<br>छू छू जग के मृत रज कण<br>कर दो तृण तरु में चेतन,<br>मृन्मरण बांध दो जग का<br>दे प्राणो का आलिंगन!<br>बरसो सुख बन, सुखमा बन,<br>बरसो जग जीवन के घन!<br>दिशि दिशि में औ' पल पल में<br>बरसो संसृति के सावन!<br><br/poem>