"वे आँखें / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत | |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | <poem> | |
अंधकार की गुहा सरीखी | अंधकार की गुहा सरीखी | ||
− | |||
उन आँखों से डरता है मन, | उन आँखों से डरता है मन, | ||
− | |||
भरा दूर तक उनमें दारुन | भरा दूर तक उनमें दारुन | ||
− | |||
दैन्य दुख का निरव रोदन! | दैन्य दुख का निरव रोदन! | ||
− | |||
वह स्वाधीन किसान रहा, | वह स्वाधीन किसान रहा, | ||
− | |||
अभिमान भरा आँखों में इसका, | अभिमान भरा आँखों में इसका, | ||
− | |||
छोड़ उसे मँझधार आज | छोड़ उसे मँझधार आज | ||
− | |||
संसार बहा सदृश बहा खिसका! | संसार बहा सदृश बहा खिसका! | ||
− | |||
लहराते वे खेत दृगों में | लहराते वे खेत दृगों में | ||
− | |||
हुया बेदखल वह अब जिनसे, | हुया बेदखल वह अब जिनसे, | ||
− | |||
हँसती थी उनके जीवन की | हँसती थी उनके जीवन की | ||
− | |||
हरियाली जिनके तृन-तृन से! | हरियाली जिनके तृन-तृन से! | ||
− | |||
आँखों में ही घुमा करता | आँखों में ही घुमा करता | ||
− | |||
वह उसकी आँखों का तारा, | वह उसकी आँखों का तारा, | ||
− | |||
कारकुनों की लाठी से जो | कारकुनों की लाठी से जो | ||
− | |||
गया जावानी में ही मारा! | गया जावानी में ही मारा! | ||
− | |||
बिका दिया घर द्वार, | बिका दिया घर द्वार, | ||
− | |||
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी, | महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी, | ||
− | |||
रह-रह आँखों में चुभती वह | रह-रह आँखों में चुभती वह | ||
− | |||
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी! | कुर्क हुई बरधों की जोड़ी! | ||
− | |||
उजरी उसके सिवा किसे कब | उजरी उसके सिवा किसे कब | ||
− | |||
पास दुहाने आने देती? | पास दुहाने आने देती? | ||
− | |||
अह, आँखों में नचा करती | अह, आँखों में नचा करती | ||
− | |||
उजड़ गई जो सुख की खेती! | उजड़ गई जो सुख की खेती! | ||
− | |||
बिना दावा दर्पन के घरनी | बिना दावा दर्पन के घरनी | ||
− | |||
स्वरग चली, आँखें आती भर, | स्वरग चली, आँखें आती भर, | ||
− | |||
देख-रेख के बिना दुधमुँही | देख-रेख के बिना दुधमुँही | ||
− | |||
बिटिया दो दिन बाद गई मर! | बिटिया दो दिन बाद गई मर! | ||
− | |||
घर में विधवा रही पतोहू, | घर में विधवा रही पतोहू, | ||
− | |||
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन, | लछमी थी, यद्यपि पति घातिन, | ||
− | |||
पकड़ मँगया कोतवाल नें, | पकड़ मँगया कोतवाल नें, | ||
− | |||
डूब कुऍं में मरी एक दिन! | डूब कुऍं में मरी एक दिन! | ||
− | |||
खैर, पैर की जूती, जोरू | खैर, पैर की जूती, जोरू | ||
− | |||
न सही एक, दूसरी आती, | न सही एक, दूसरी आती, | ||
− | |||
पर जवान लड़के की सुध कर | पर जवान लड़के की सुध कर | ||
− | |||
साँप लोटते, फटती छाती। | साँप लोटते, फटती छाती। | ||
− | |||
पिछले सुख की स्मृति आँखों में | पिछले सुख की स्मृति आँखों में | ||
− | |||
क्षण भर एक चमक है लाती, | क्षण भर एक चमक है लाती, | ||
− | |||
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन | तुरत शून्य में गड़ वह चितवन | ||
− | |||
तीखी नोख सदृश बन जाती। | तीखी नोख सदृश बन जाती। | ||
+ | </poem> |
12:25, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण
अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुन
दैन्य दुख का निरव रोदन!
वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा आँखों में इसका,
छोड़ उसे मँझधार आज
संसार बहा सदृश बहा खिसका!
लहराते वे खेत दृगों में
हुया बेदखल वह अब जिनसे,
हँसती थी उनके जीवन की
हरियाली जिनके तृन-तृन से!
आँखों में ही घुमा करता
वह उसकी आँखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जावानी में ही मारा!
बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती!
बिना दावा दर्पन के घरनी
स्वरग चली, आँखें आती भर,
देख-रेख के बिना दुधमुँही
बिटिया दो दिन बाद गई मर!
घर में विधवा रही पतोहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकड़ मँगया कोतवाल नें,
डूब कुऍं में मरी एक दिन!
खैर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लोटते, फटती छाती।
पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोख सदृश बन जाती।