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"कुसुमों के जीवन का पल / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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कुसुमों के जीवन का पल
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हँसता ही जग में देखा,
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इन म्लान, मलिन अधरों पर
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स्थिर रही न स्मिति की रेखा ! 
  
कुसुमों के जीवन का पल<br>
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वन की सूनी डाली पर
हँसता ही जग में देखा,<br>
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मैं सीख न पाया अब तक
स्थिर रही न स्मिति की रेखा !<br><br>
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सुख से दुख को अपनाना !
  
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सीखा कलि ने मुसकाना,<br>
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मैं सीख न पाया अब तक<br>
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सुख से दुख को अपनाना !<br><br>
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पल्लव की फूटी लाली !
  
काँटों से कुटिल भरी हो<br>
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अपनी डाली के काँटे
यह जटिल जगत की डाली,<br>
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बेधते नहीं अपना तन
इसमें ही तो जीवन के<br>
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सोने-सा उज्जवल बनने
पल्लव की फूटी लाली !<br><br>
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तपता नित प्राणों का धन !
  
अपनी डाली के काँटे<br>
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बेधते नहीं अपना तन<br>
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पाता जग-जीवन का वन,  
सोने-सा उज्जवल बनने<br>
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करुणार्द्र विश्व की गर्जन,  
तपता नित प्राणों का धन !<br><br>
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बरसाती नव जीवन-कण !  
 
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पाता जग-जीवन का वन,<br>
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13:09, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण

कुसुमों के जीवन का पल
हँसता ही जग में देखा,
इन म्लान, मलिन अधरों पर
स्थिर रही न स्मिति की रेखा !

वन की सूनी डाली पर
सीखा कलि ने मुसकाना,
मैं सीख न पाया अब तक
सुख से दुख को अपनाना !

काँटों से कुटिल भरी हो
यह जटिल जगत की डाली,
इसमें ही तो जीवन के
पल्लव की फूटी लाली !

अपनी डाली के काँटे
बेधते नहीं अपना तन
सोने-सा उज्जवल बनने
तपता नित प्राणों का धन !

दुख-दावा से नव अंकुर
पाता जग-जीवन का वन,
करुणार्द्र विश्व की गर्जन,
बरसाती नव जीवन-कण !

(फरवरी,1932)