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लेता पकड़ अपर रणधीर,
पटे खेत अगणित लाशों से
कटे हजारों वीर जवान,
डटे लाश पर पैर जमाये,
हटे न वीर छोड़ मैदान।
देह चाहता है सुख-संगम
चित्त-विहंगम स्वर-मधु-धार,
हँसी-हिंडोला झूल चाहता
मन जाना दुख-सागर-पार!
 
हिम-शशांक का किरण-अंग-सुख
कहो, कौन जो देगा छोड़-
तपन-ताप-मध्यान्ह प्रखरता
से नाता जो लेगा जोड़?
चण्ड दिवाकर ही तो भरता
शशघर में कर-कोमल-प्राण,
किन्तु कलाधर को ही देता
सारा
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