भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हमसे मुसाफ़िरों का सफ़र इंतज़ार है / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
किस रोशनी के शहर से गुज़रे हैं तेज़ रौ | किस रोशनी के शहर से गुज़रे हैं तेज़ रौ | ||
− | नीले समन्दरों पे सुनहरा | + | नीले समन्दरों पे सुनहरा ग़ुबार है |
− | + | ||
आई निदा वो उड़ते सितारे इधर मुझे | आई निदा वो उड़ते सितारे इधर मुझे | ||
इन बदलियों के पीछे कोई कोहसार है | इन बदलियों के पीछे कोई कोहसार है | ||
</poem> | </poem> |
04:23, 15 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
हमसे मुसाफ़िरों का सफ़र इन्तिज़ार है
सब खिड़कियों के सामने लम्बी क़तार है
बाँसों के जंगलों में वो ही तेज़ बू मिली
जिनका हमारी बस्तियों में कारोबार है
ग़ुब्बारा फट रहा है हवाओं के ज़ोर से
दुनिया को अपनी मौत का अब इन्तिज़ार है
किस रोशनी के शहर से गुज़रे हैं तेज़ रौ
नीले समन्दरों पे सुनहरा ग़ुबार है
आई निदा वो उड़ते सितारे इधर मुझे
इन बदलियों के पीछे कोई कोहसार है