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"कविता कोश में वर्तनी के मानक" के अवतरणों में अंतर

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व्यंजन वर्गों में होते हैं। उदाहरण के लिए क ख ग घ ङ को वर्ग कवर्ग कहा जाता है और च छ ज झ ञ चवर्ग यानि हर वर्ग का नाम अपने वर्ग के पहले व्यंजन पर होता है। हर वर्ग का अंतिम व्यंजन अनुनासिक होता है। यानि उसका उच्चारण करने में नासिका (नाक) का सहयोग लेना पड़ता है। संसकृत के एक नियम के  अनुसार अनुनासिक व्यंजनों को बिंदु में बदला जा सकता है। हम कविता कोश में इसी नियम का पालन करते हुए अनुनासिक व्यंजनों के लिए बिंदी का प्रयोग करेंगे। यानि बिन्दी की जगह बिंदी कङ्गन की जगह कंगन, चंञ्चल की जगह चंचल इस प्रकार लिखेंगे।   
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व्यंजन वर्गों में होते हैं। उदाहरण के लिए क ख ग घ ङ को वर्ग कवर्ग कहा जाता है और च छ ज झ ञ चवर्ग यानि हर वर्ग का नाम अपने वर्ग के पहले व्यंजन पर होता है। हर वर्ग का अंतिम व्यंजन अनुनासिक होता है। यानि उसका उच्चारण करने में नासिका (नाक) का सहयोग लेना पड़ता है। संसकृत के एक नियम के  अनुसार अनुनासिक व्यंजनों को बिंदु में बदला जा सकता है। हम कविता कोश में इसी नियम का पालन करते हुए अनुनासिक व्यंजनों के लिए बिंदी का प्रयोग करेंगे। यानि बिन्दी की जगह बिंदी कङ्गन की जगह कंगन, चंञ्चल की जगह चंचल कण्ठ की जगह कंठ, कुन्तल की जगह कुंतल इस प्रकार लिखेंगे।   
  
  

13:54, 2 दिसम्बर 2006 का अवतरण

इस नये पन्ने पर कविता कोश में प्रयोग होने वाले वर्तनी सम्बंधी मानकों को तय किया जाएगा। जब तक मानक तय नहीं हो जाते -तब तक यह पन्ना सभी के द्वारा संशोधित किये जाने के लिये खुला रहेगा। मानकीकरण पूरा होने के बाद -इस पन्ने पर कोई बदलाव नहीं किया जा सकेगा। विशेष परिस्थितियों में केवल कविता कोश टीम ही इस पन्ने पर बदलाव कर पाएगी।

आप सभी से निवेदन है कि कोश में वर्तनी के मानकीकरण के बारे में अपने विचार इस पन्ने पर जोड़ें।

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* वर्तनी के नियमों को समझने के लिए वर्णमाला को ठीक तरह से समझ लेना ज़रूरी है। इसलिए यहाँ पहले स्वर और व्यंजनों को क्रमानुसार दिया जा रहा है। इसको ठीक से समझ लें।

स्वर - अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः ये स्वर हैं। स्वरों की मा‌त्राएँ होती हैं जिनका प्रयोग व्यंजनों में किया जाता है। ऊपर की बिंदी को अनुस्वार और दाहिनी ओर आने वाली बिंदी को विसर्ग कहते हैं।


व्यंजन वर्गों में होते हैं। उदाहरण के लिए क ख ग घ ङ को वर्ग कवर्ग कहा जाता है और च छ ज झ ञ चवर्ग यानि हर वर्ग का नाम अपने वर्ग के पहले व्यंजन पर होता है। हर वर्ग का अंतिम व्यंजन अनुनासिक होता है। यानि उसका उच्चारण करने में नासिका (नाक) का सहयोग लेना पड़ता है। संसकृत के एक नियम के अनुसार अनुनासिक व्यंजनों को बिंदु में बदला जा सकता है। हम कविता कोश में इसी नियम का पालन करते हुए अनुनासिक व्यंजनों के लिए बिंदी का प्रयोग करेंगे। यानि बिन्दी की जगह बिंदी कङ्गन की जगह कंगन, चंञ्चल की जगह चंचल कण्ठ की जगह कंठ, कुन्तल की जगह कुंतल इस प्रकार लिखेंगे।


अनुनासिक के लिए चंद्र बिंदु का प्रयोग भी होता है। जैसे गाँव में। लेकिन जिन व्यंजनों मे इ ई ए ऐ ओ या औ की मा‌त्रा होती है उनमें चंद्र बिंदु की जगह केवल बिंदु का प्रयोग किया जाता है जैसे हिंदी, नींद, फेंका, गैंडा, गोंद और छौंकना इत्यादि।


यहाँ यह याद रखना चाहिए कि अनुस्वार (ऊपर की बिंदी) का प्रयोग अं की मात्रा के रूप में भी होता है। जैसे अगर 'हंस' लिखा जाए तो इसका अर्थ होगा हंस पक्षी और अगर हँस लिखा जाए तो इसका अर्थ होगा हँसने की क्रिया। इसी तरह चंद्र में ऊपर बिंदी अं की मात्रा के रूप में होती है। अगर हम चाँद लिखें तो ऊपर चंद्र बिंदु लगाना होगा क्यों कि किसी भी व्यंजन में दो मात्राएँ एक साथ नहीं लग सकती हैं। अनुस्वार और चंद्र बिंदु के उच्चारण में भी थोड़ी भिन्नता है जो लोग हिंदी बोलते हैं वे इसे समझ सकते हैं। एक व्यंजन में एक समय में केवल ही मात्रा का प्रयोग किया जा सकता है।


सही / गलत वर्तनी

कंठ / कण्ठ

में / मेँ

जड़ / जड