भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कान्ह भये बस बाँसुरी के / रसखान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = रसखान }}<poem>कान्ह भये बस बाँसुरी के, अब कौन सखी हम…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
07:50, 15 अक्टूबर 2009 का अवतरण
कान्ह भये बस बाँसुरी के, अब कौन सखी हमको चहिहै।
निसि द्यौस रहे यह आस लगी, यह सौतिन सांसत को सहिहै।
जिन मोहि लियो मनमोहन को, 'रसखानि' सु क्यों न हमैं दहिहै।
मिलि आवो सबै कहुं भाग चलैं, अब तो ब्रज में बाँसुरी रहिहै।