भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सर झुकओगे तो पत्थर / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
छो |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=उजाले अपनी यादों के / बशीर बद्र | |संग्रह=उजाले अपनी यादों के / बशीर बद्र | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
<poem> | <poem> | ||
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा । | सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा । |
21:09, 15 अक्टूबर 2009 का अवतरण
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा ।
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा ।
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा ।
कितना सच्चाई से, मुझसे ज़िंदगी ने कह दिया,
तू नहीं मेरा तो कोई, दूसरा हो जाएगा ।
मैं ख़ुदा का नाम लेकर, पी रहा हूँ दोस्तो,
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा ।
सब उसी के हैं, हवा, ख़ुश्बू, ज़मीनो-आस्माँ,
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा ।