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रात इक ख्वाब हमने देखा है / बशीर बद्र का नाम बदलकर रात इक ख़्वाब हमने देखा है / बशीर बद्र कर दिया गया
{{KKRachna
|रचनाकार=बशीर बद्र
|संग्रह=उजाले अपनी यादों के / बशीर बद्र }}[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}
<poem>
रात इक ख्वाब ख़्वाब हमने देखा है
फूल की पंखुड़ी को चूमा है
तुम अगर मिल भी जाओ तो भी हमें
हश्र तक इंतिज़ार करना है
पैसा हाथों का मैल है बाबा
ज़िंदगी चार दिन का मेला है
</poem>
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