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"गिरिराज / सोहनलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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− | जिसमें मोती चुगते मराल, | + | जिसमें मोती चुगते मराल, |
− | हैं यहीं कहीं कैलास शिखर | + | हैं यहीं कहीं कैलास शिखर |
− | जिसमें रहते शंकर कृपाल! | + | जिसमें रहते शंकर कृपाल! |
− | युग युग से यह है अचल खड़ा | + | युग युग से यह है अचल खड़ा |
− | बनकर स्वदेश का शुभ्र छत्र! | + | बनकर स्वदेश का शुभ्र छत्र! |
− | इसके अँचल में बहती हैं | + | इसके अँचल में बहती हैं |
− | गंगा सजकर नवफूल पत्र! | + | गंगा सजकर नवफूल पत्र! |
− | इस जगती में जितने गिरि हैं | + | इस जगती में जितने गिरि हैं |
− | सब झुक करते इसको प्रणाम, | + | सब झुक करते इसको प्रणाम, |
− | गिरिराज यही, नगराज यही | + | गिरिराज यही, नगराज यही |
− | जननी का गौरव गर्व–धाम! | + | जननी का गौरव गर्व–धाम! |
− | इस पार हमारा भारत है, | + | इस पार हमारा भारत है, |
− | उस पार चीन–जापान देश | + | उस पार चीन–जापान देश |
− | मध्यस्थ खड़ा है दोनों में | + | मध्यस्थ खड़ा है दोनों में |
− | एशिया खंड का यह नगेश! < | + | एशिया खंड का यह नगेश! |
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09:51, 17 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
यह है भारत का शुभ्र मुकुट
यह है भारत का उच्च भाल,
सामने अचल जो खड़ा हुआ
हिमगिरि विशाल, गिरिवर विशाल!
कितना उज्ज्वल, कितना शीतल
कितना सुन्दर इसका स्वरूप?
है चूम रहा गगनांगन को
इसका उन्नत मस्तक अनूप!
है मानसरोवर यहीं कहीं
जिसमें मोती चुगते मराल,
हैं यहीं कहीं कैलास शिखर
जिसमें रहते शंकर कृपाल!
युग युग से यह है अचल खड़ा
बनकर स्वदेश का शुभ्र छत्र!
इसके अँचल में बहती हैं
गंगा सजकर नवफूल पत्र!
इस जगती में जितने गिरि हैं
सब झुक करते इसको प्रणाम,
गिरिराज यही, नगराज यही
जननी का गौरव गर्व–धाम!
इस पार हमारा भारत है,
उस पार चीन–जापान देश
मध्यस्थ खड़ा है दोनों में
एशिया खंड का यह नगेश!