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"रे मन / सोहनलाल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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बन अचल हिमवान रे मन। 
  
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हो बनी गम्भीर रजनी,
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रश्मियाँ भी बिछलती हो,<br>
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तू तुषार गुहा गहन में <br>
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बन मधुप की तान रे मन। <br><br>
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10:04, 17 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

प्रबल झंझावत में तू
बन अचल हिमवान रे मन।

हो बनी गम्भीर रजनी,
सूझती हो न अवनी,
ढल न अस्ताचल अतल में
बन सुवर्ण विहान रे मन।

उठ रही हो सिन्धु लहरी
हो न मिलती थाह गहरी
नील नीरधि का अकेला
बन सुभग जलयान रे मन।

कमल कलियाँ संकुचित हो,
रश्मियाँ भी बिछलती हो,
तू तुषार गुहा गहन में
बन मधुप की तान रे मन।