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"पैर उठे, हवा चली। / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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खिंचे नयन-नयन प्राण,
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गन्ध-गन्ध सिंची गली।
  
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पवन-पवन पावन है
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जीवन-वन सावन है,
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जन-जन मनभावन है,
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आशा सुखशयन-पली।
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दूर हुआ कलुष-भेद,
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कण्टके निस्पन्ध छेद,
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खुले सर्ग, दिव्य वेद,
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माया हो गई भली।
 
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15:38, 17 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

पैर उठे, हवा चली।
उर-उर की खिली कली।

शाख-शाख तनी तान,
विपिन-विपिन खिले गान,
खिंचे नयन-नयन प्राण,
गन्ध-गन्ध सिंची गली।

पवन-पवन पावन है
जीवन-वन सावन है,
जन-जन मनभावन है,
आशा सुखशयन-पली।

दूर हुआ कलुष-भेद,
कण्टके निस्पन्ध छेद,
खुले सर्ग, दिव्य वेद,
माया हो गई भली।