भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पैर उठे, हवा चली। / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=अर्चना / सूर…) |
|||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
शाख-शाख तनी तान, | शाख-शाख तनी तान, | ||
विपिन-विपिन खिले गान, | विपिन-विपिन खिले गान, | ||
+ | खिंचे नयन-नयन प्राण, | ||
+ | गन्ध-गन्ध सिंची गली। | ||
+ | पवन-पवन पावन है | ||
+ | जीवन-वन सावन है, | ||
+ | जन-जन मनभावन है, | ||
+ | आशा सुखशयन-पली। | ||
+ | |||
+ | दूर हुआ कलुष-भेद, | ||
+ | कण्टके निस्पन्ध छेद, | ||
+ | खुले सर्ग, दिव्य वेद, | ||
+ | माया हो गई भली। | ||
</poem> | </poem> |
15:38, 17 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
पैर उठे, हवा चली।
उर-उर की खिली कली।
शाख-शाख तनी तान,
विपिन-विपिन खिले गान,
खिंचे नयन-नयन प्राण,
गन्ध-गन्ध सिंची गली।
पवन-पवन पावन है
जीवन-वन सावन है,
जन-जन मनभावन है,
आशा सुखशयन-पली।
दूर हुआ कलुष-भेद,
कण्टके निस्पन्ध छेद,
खुले सर्ग, दिव्य वेद,
माया हो गई भली।