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"टुकडे अस्तित्व के / राजीव रंजन प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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जरासंध की जंघाओं से दो फांक हो कर
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कितनी सदियाँ बीत गयीं
जुडते हैं इस तरह टुकडे अस्तित्व के
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बुलबुल नें अपना दिल बोया
जैसे कि छोटी नदिया गंगा में मिल गयी हो
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रोयी तो सींच गये आँसू
चाहो तो जाँच कर लो
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नन्हा सा अंकुर फूट पडा
अब मिल गया है सब कुछ, एक रंग हो गया है
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हर हर हुई है गंगे, हर कुछ समा गया है
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फिर उठ खडा हुआ हूँ, हिम्मत बटोर ली है
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मैं जानता हूँ दुनिया भी भीम हो गयी है
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वो दांव-पेंच जानें कि फिर चिरा न जाऊं
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लेकिन लडूंगा जब तक सागर में मिल न जाऊं
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मैं जानता हूँ कान्हा तुम राज जानते हो
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सैय्याद जाल में फांस गया
टुकडा उठा के तृण का
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अब बुलबुल पिंजरे में गाती थी
दो फांक कर के तुमने उलटा रखा है ऐसे
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याद उसे अब भी आती थी
जैसे कि वक्त मेरा मुझको छला किये है
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नन्हा सा अंकुर फूट पडा है
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दिल एक पेड बन जायेगा
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फिर फूलों से लद जायेगा..
  
मैं मुस्कुरा रहा हूँ
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आकाश भरा था आँखों में
मैं मिटने जा रहा हूँ
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रोती थी चीख चीख रोती थी
तुममें समा रहा हूँ
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सैय्याद समझता था गाती है
फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?
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एसे ही बुलबुल मर जाती है
तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के
+
 
जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के...
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दिल अब बरगद हो आया है
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उसकी छाती में छाया है
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फूल मगर कैसे खिलते हैं
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बुलबुल गा जाये तो जानें...
 
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11:05, 18 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

कितनी सदियाँ बीत गयीं
बुलबुल नें अपना दिल बोया
रोयी तो सींच गये आँसू
नन्हा सा अंकुर फूट पडा

सैय्याद जाल में फांस गया
अब बुलबुल पिंजरे में गाती थी
याद उसे अब भी आती थी
नन्हा सा अंकुर फूट पडा है
दिल एक पेड बन जायेगा
फिर फूलों से लद जायेगा..

आकाश भरा था आँखों में
रोती थी चीख चीख रोती थी
सैय्याद समझता था गाती है
एसे ही बुलबुल मर जाती है

दिल अब बरगद हो आया है
उसकी छाती में छाया है
फूल मगर कैसे खिलते हैं
बुलबुल गा जाये तो जानें...