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"टुकडे अस्तित्व के / राजीव रंजन प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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11:05, 18 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
कितनी सदियाँ बीत गयीं
बुलबुल नें अपना दिल बोया
रोयी तो सींच गये आँसू
नन्हा सा अंकुर फूट पडा
सैय्याद जाल में फांस गया
अब बुलबुल पिंजरे में गाती थी
याद उसे अब भी आती थी
नन्हा सा अंकुर फूट पडा है
दिल एक पेड बन जायेगा
फिर फूलों से लद जायेगा..
आकाश भरा था आँखों में
रोती थी चीख चीख रोती थी
सैय्याद समझता था गाती है
एसे ही बुलबुल मर जाती है
दिल अब बरगद हो आया है
उसकी छाती में छाया है
फूल मगर कैसे खिलते हैं
बुलबुल गा जाये तो जानें...