"इसका रोना / सुभद्राकुमारी चौहान" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभद्राकुमारी चौहान }}<poem> तुम कहते हो - मुझको इसक...) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=सुभद्राकुमारी चौहान | |रचनाकार=सुभद्राकुमारी चौहान | ||
− | }}<poem> | + | }} |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है | | तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है | | ||
मैं कहती हूँ - इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है || | मैं कहती हूँ - इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है || | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 29: | ||
तुमको सुन कर चिढ़ आती है मुझ को होता है अभिमान | | तुमको सुन कर चिढ़ आती है मुझ को होता है अभिमान | | ||
जैसे भक्तों की पुकार सुन गर्वित होते हैं भगवान || 5 || | जैसे भक्तों की पुकार सुन गर्वित होते हैं भगवान || 5 || | ||
+ | </poem> |
15:59, 18 अक्टूबर 2009 का अवतरण
तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है |
मैं कहती हूँ - इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है ||
सच कहती हूँ, इस रोने की छवि को जरा निहारोगे |
बड़ी-बड़ी आँसू की बूँदों पर मुक्तावली वारोगे || 1 ||
ये नन्हे से होंठ और यह लम्बी-सी सिसकी देखो |
यह छोटा सा गला और यह गहरी-सी हिचकी देखो ||
कैसी करुणा-जनक दृष्टि है, हृदय उमड़ कर आया है |
छिपे हुए आत्मीय भाव को यह उभाड़ कर लाया है || 2 ||
हँसी बाहरी, चहल-पहल को ही बहुधा दरसाती है |
पर रोने में अंतर तम तक की हसचल मच जाती है ||
जिससे सोई हुई आत्मा जागती है, अकुलाती है |
छुटे हुए किसी साथी को अपने पास बुलाती है || 3 ||
मैं सुनती हूँ कोई मेरा मुझको अहा ! बुलाता है |
जिसकी करुणापूर्ण चीख से मेरा केवल नाता है ||
मेरे उपर वह निर्भर है खाने, पीने, सोने में |
जीवन की प्रत्येक क्रिया में, हँसने में ज्यों रोने में || 4 ||
मैं हूँ उसकी प्रकृति संगिनी उसकी जन्म-प्रदाता हूँ |
वह मेरी प्यारी बिटिया है मैं ही उसकी प्यारी माता हूँ ||
तुमको सुन कर चिढ़ आती है मुझ को होता है अभिमान |
जैसे भक्तों की पुकार सुन गर्वित होते हैं भगवान || 5 ||