भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अंखियां हरि-दरसन की भूखी / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} राग टोडी अंखियां हरि-दरसन की भूखी। कैसे र...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=सूरदास
 
|रचनाकार=सूरदास
 
}}  
 
}}  
 
+
[[Category:पद]]
 
राग टोडी
 
राग टोडी
 
+
<poem>
 
+
 
+
 
अंखियां हरि-दरसन की भूखी।
 
अंखियां हरि-दरसन की भूखी।
 
 
कैसे रहैं रूप-रस रांची ये बतियां सुनि रूखी॥
 
कैसे रहैं रूप-रस रांची ये बतियां सुनि रूखी॥
 
 
अवधि गनत इकटक मग जोवत तब ये तौ नहिं झूखी।
 
अवधि गनत इकटक मग जोवत तब ये तौ नहिं झूखी।
 
 
अब इन जोग संदेसनि ऊधो, अति अकुलानी दूखी॥
 
अब इन जोग संदेसनि ऊधो, अति अकुलानी दूखी॥
 
 
बारक वह मुख फेरि दिखावहुदुहि पय पिवत पतूखी।
 
बारक वह मुख फेरि दिखावहुदुहि पय पिवत पतूखी।
 
 
सूर, जोग जनि नाव चलावहु ये सरिता हैं सूखी॥
 
सूर, जोग जनि नाव चलावहु ये सरिता हैं सूखी॥
  
 
+
</poem>
 
भावार्थ :- `अंखियां... रूखी,' जिन आंखों में हरि-दर्शन की भूल लगी हुई है, जो रूप-
 
भावार्थ :- `अंखियां... रूखी,' जिन आंखों में हरि-दर्शन की भूल लगी हुई है, जो रूप-
 
रस मे रंगी जा चुकी हैं, उनकी तृप्ति योग की नीरस बातों से कैसे हो सकती है ?
 
रस मे रंगी जा चुकी हैं, उनकी तृप्ति योग की नीरस बातों से कैसे हो सकती है ?

11:28, 19 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

राग टोडी

अंखियां हरि-दरसन की भूखी।
कैसे रहैं रूप-रस रांची ये बतियां सुनि रूखी॥
अवधि गनत इकटक मग जोवत तब ये तौ नहिं झूखी।
अब इन जोग संदेसनि ऊधो, अति अकुलानी दूखी॥
बारक वह मुख फेरि दिखावहुदुहि पय पिवत पतूखी।
सूर, जोग जनि नाव चलावहु ये सरिता हैं सूखी॥

भावार्थ :- `अंखियां... रूखी,' जिन आंखों में हरि-दर्शन की भूल लगी हुई है, जो रूप- रस मे रंगी जा चुकी हैं, उनकी तृप्ति योग की नीरस बातों से कैसे हो सकती है ? `अवधि.....दूखी,' इतनी अधिक खीझ इन आंखों को पहले नहीं हुई थी, क्योंकि श्रीकृष्ण के आने की प्रतीक्षा में अबतक पथ जोहा करती थीं। पर उद्धव, तुम्हारे इन योग के संदेशों से इनका दुःख बहुत बढ़ गया है। `जोग जनि...सूखी,' अपने योग की नाव तुम कहां चलाने आए हो? सूखी रेत की नदियों में भी कहीं नाव चला करती है? हम विरहिणी ब्रजांगनाओं को क्यों योग के संदेश देकर पीड़ित करते हो ? हम तुम्हारे योग की अधिकारिणी नहीं हैं।


शब्दार्थ :- रांची =रंगी हुईं अनुरूप। अवधि = नियत समय। झूखी = दुःख से पछताई खीजी। दुःखी =दुःखित हुई। बारक =एक बार। पतूखी =पत्तेश का छोटा-सा दाना