भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डाली की तरह चाल लचक उठती है / जाँ निसार अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर }} Category:रुबाई <poem> डाली की तरह चाल …)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:13, 19 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

डाली की तरह चाल लचक उठती है
ख़ुशबू से हर इक साँस छलक उठती है

जूड़े में जो वो फूल लगा देते हैं
अंदर से मेरी रूह महक उठती है