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"मन था भी तो लगता था पराया है सखी / जाँ निसार अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

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मन था भी तो लगता था पराया है सखी
 
मन था भी तो लगता था पराया है सखी
तन को तो समझती थी कि छाया है सकी
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तन को तो समझती थी कि छाया है सखी
  
 
अब माँ जो बनी हूँ तो हुआ है महसूस
 
अब माँ जो बनी हूँ तो हुआ है महसूस
 
मैंने कहीं आज खुद को पाया है सखी
 
मैंने कहीं आज खुद को पाया है सखी
 
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18:32, 19 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

मन था भी तो लगता था पराया है सखी
तन को तो समझती थी कि छाया है सखी

अब माँ जो बनी हूँ तो हुआ है महसूस
मैंने कहीं आज खुद को पाया है सखी