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"जज़्बों की गिरह खोल रही हो जैसे / जाँ निसार अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
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जज़्बों की गिरह खोल रही हो जैसे | जज़्बों की गिरह खोल रही हो जैसे |
18:49, 19 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
जज़्बों की गिरह खोल रही हो जैसे
अल्फ़ाज़ में रस घोल रही हो जैसे
अब शेर जो लिखता हूँ तो यूँ लगता है
तुम पास खड़ी बोल रही हो जैसे