भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उधो, मन न भए दस बीस / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (उधो, मन नाहीं दस बीस / सूरदास का नाम बदलकर उधो, मन न भए दस बीस / सूरदास कर दिया गया है)
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=सूरदास
 
|रचनाकार=सूरदास
 
}}  
 
}}  
 
+
[[Category:पद]]
 
राग रामकली
 
राग रामकली
  
 
+
<poem>
 
+
 
+
 
उधो, मन न भए दस बीस।
 
उधो, मन न भए दस बीस।
 
 
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
 
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
 
 
सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।
 
सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।
 
 
स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥
 
स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥
 
 
तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस।
 
तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस।
 
 
सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीस॥
 
सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीस॥
 
+
</poem>
  
  
पंक्ति 30: पंक्ति 23:
 
को करोड़ों वर्ष रख सकती हैं।"  
 
को करोड़ों वर्ष रख सकती हैं।"  
 
`सकल जोग के ईस' क्या कहना, तुम तो योगियों में भी शिरोमणि हो। यह व्यंग्य है।
 
`सकल जोग के ईस' क्या कहना, तुम तो योगियों में भी शिरोमणि हो। यह व्यंग्य है।
 
 
  
  

19:08, 19 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

राग रामकली

उधो, मन न भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।
स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥
तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस।
सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीस॥


टिप्पणी :- गोपियां कहती है, `मन तो हमारा एक ही है, दस-बीस मन तो हैं नहीं कि एक को किसी के लगा दें और दूसरे को किसी और में। अब वह भी नहीं है, कृष्ण के साथ अब वह भी चला गया। तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म की उपासना अब किस मन से करें ?" `स्वासा....बरीस,' गोपियां कहती हैं,"यों तो हम बिना सिर की-सी हो गई हैं, हम कृष्ण वियोगिनी हैं, तो भी श्याम-मिलन की आशा में इस सिर-विहीन शरीर में हम अपने प्राणों को करोड़ों वर्ष रख सकती हैं।" `सकल जोग के ईस' क्या कहना, तुम तो योगियों में भी शिरोमणि हो। यह व्यंग्य है।


शब्दार्थ :- हुतो =था। अवराधै = आराधना करे, उपासना करे। ईस =निर्गुण ईश्वर। सिथिल भईं = निष्प्राण सी हो गई हैं। स्वासा = श्वास, प्राण। बरीश = वर्ष का अपभ्रंश। पुरवौ मन = मन की इच्छा पूरी करो।