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"गीत गाने दो मुझे / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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ठाकुरों ने रात लूटे, | ठाकुरों ने रात लूटे, | ||
कंठ रूकता जा रहा है, | कंठ रूकता जा रहा है, | ||
− | आ रहा है काल | + | आ रहा है काल देखो। |
भर गया है ज़हर से | भर गया है ज़हर से |
19:56, 19 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
गीत गाने दो मुझे तो,
वेदना को रोकने को।
चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे,
हाथ जो पाथेय थे, ठग-
ठाकुरों ने रात लूटे,
कंठ रूकता जा रहा है,
आ रहा है काल देखो।
भर गया है ज़हर से
संसार जैसे हार खाकर,
देखते हैं लोग लोगों को,
सही परिचय न पाकर,
बुझ गई है लौ पृथा की,
जल उठो फिर सींचने को।