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"अट नहीं रही है / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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आभा फागुन की तन
 
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सट नहीं रही है।
 
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कहीं साँस लेते हो,
 
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घर-घर भर देते हो,
 
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उड़ने को नभ में तुम
 
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पर-पर कर देते हो,
 
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आँख हटाता हूँ तो
 
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हट नहीं रही है।
 
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पत्‍तों से लदी डाल
 
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कहीं हरी, कहीं लाल,
 
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मंद - गंध-पुष्‍प माल,
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पाट-पाट शोभा-श्री
 
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20:24, 19 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।

कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।

पत्‍तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में,
मंद - गंध-पुष्‍प माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।