"इसका रोना / सुभद्राकुमारी चौहान" के अवतरणों में अंतर
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तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है | | तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है | | ||
मैं कहती हूँ - इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है || | मैं कहती हूँ - इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है || | ||
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यह छोटा सा गला और यह गहरी-सी हिचकी देखो || | यह छोटा सा गला और यह गहरी-सी हिचकी देखो || | ||
कैसी करुणा-जनक दृष्टि है, हृदय उमड़ कर आया है | | कैसी करुणा-जनक दृष्टि है, हृदय उमड़ कर आया है | | ||
− | छिपे हुए आत्मीय भाव को यह | + | छिपे हुए आत्मीय भाव को यह उभार कर लाया है || 2 || |
हँसी बाहरी, चहल-पहल को ही बहुधा दरसाती है | | हँसी बाहरी, चहल-पहल को ही बहुधा दरसाती है | | ||
− | पर रोने में अंतर तम तक की | + | पर रोने में अंतर तम तक की हलचल मच जाती है || |
जिससे सोई हुई आत्मा जागती है, अकुलाती है | | जिससे सोई हुई आत्मा जागती है, अकुलाती है | | ||
छुटे हुए किसी साथी को अपने पास बुलाती है || 3 || | छुटे हुए किसी साथी को अपने पास बुलाती है || 3 || | ||
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मैं सुनती हूँ कोई मेरा मुझको अहा ! बुलाता है | | मैं सुनती हूँ कोई मेरा मुझको अहा ! बुलाता है | | ||
जिसकी करुणापूर्ण चीख से मेरा केवल नाता है || | जिसकी करुणापूर्ण चीख से मेरा केवल नाता है || | ||
− | मेरे | + | मेरे ऊपर वह निर्भर है खाने, पीने, सोने में | |
जीवन की प्रत्येक क्रिया में, हँसने में ज्यों रोने में || 4 || | जीवन की प्रत्येक क्रिया में, हँसने में ज्यों रोने में || 4 || | ||
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तुमको सुन कर चिढ़ आती है मुझ को होता है अभिमान | | तुमको सुन कर चिढ़ आती है मुझ को होता है अभिमान | | ||
जैसे भक्तों की पुकार सुन गर्वित होते हैं भगवान || 5 || | जैसे भक्तों की पुकार सुन गर्वित होते हैं भगवान || 5 || | ||
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19:04, 20 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है |
मैं कहती हूँ - इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है ||
सच कहती हूँ, इस रोने की छवि को जरा निहारोगे |
बड़ी-बड़ी आँसू की बूँदों पर मुक्तावली वारोगे || 1 ||
ये नन्हे से होंठ और यह लम्बी-सी सिसकी देखो |
यह छोटा सा गला और यह गहरी-सी हिचकी देखो ||
कैसी करुणा-जनक दृष्टि है, हृदय उमड़ कर आया है |
छिपे हुए आत्मीय भाव को यह उभार कर लाया है || 2 ||
हँसी बाहरी, चहल-पहल को ही बहुधा दरसाती है |
पर रोने में अंतर तम तक की हलचल मच जाती है ||
जिससे सोई हुई आत्मा जागती है, अकुलाती है |
छुटे हुए किसी साथी को अपने पास बुलाती है || 3 ||
मैं सुनती हूँ कोई मेरा मुझको अहा ! बुलाता है |
जिसकी करुणापूर्ण चीख से मेरा केवल नाता है ||
मेरे ऊपर वह निर्भर है खाने, पीने, सोने में |
जीवन की प्रत्येक क्रिया में, हँसने में ज्यों रोने में || 4 ||
मैं हूँ उसकी प्रकृति संगिनी उसकी जन्म-प्रदाता हूँ |
वह मेरी प्यारी बिटिया है मैं ही उसकी प्यारी माता हूँ ||
तुमको सुन कर चिढ़ आती है मुझ को होता है अभिमान |
जैसे भक्तों की पुकार सुन गर्वित होते हैं भगवान || 5 ||