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Kavita Kosh से
|रचनाकार=इला प्रसाद
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मैंने पलाश की एक डाली हिलाई
तुम मर मिटे
पुरुष हो!
मैं चुपचाप निरखती निखरती रही
सुगंध तलाशती रही
स्त्री हूँ न!
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