भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहावत ऐसे दानी दानि / सूरदास

23 bytes added, 09:38, 22 अक्टूबर 2009
|रचनाकार=सूरदास
}}
[[Category:पद]]राग नटनट<poem>
कहावत ऐसे दानी दानि।
 
चारि पदारथ दिये सुदामहिं, अरु गुरु को सुत आनि॥
 
रावन के दस मस्तक छेद, सर हति सारंगपानि।
 
लंका राज बिभीषन दीनों पूरबली पहिचानि।
 
मित्र सुदामा कियो अचानक प्रीति पुरातन जानि।
 
सूरदास सों कहा निठुरई, नैननि हूं की हानि॥
</poem>
भावार्थ :- `कहावत ...दानि' ऐसे दानी आज`दानी' के नाम से प्रसिद्ध हैं; राम और
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits