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"धूप सा तन दीप सी मैं / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन,<br>
 
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खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मन<br>
 
खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मन<br>

19:06, 20 फ़रवरी 2007 का अवतरण

लेखिका: महादेवी वर्मा

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धूप सा तन दीप सी मैं!

धूप सा तन दीप सी मैं!,
उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन,
खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मन
अश्रु से गीला सृजन-पल,
औ' विसर्जन पुलक-उज्ज्वल,
आ रही अविराम मिट मिट
स्वजन ओर समीप सी मैं!

सघन घन का चल तुरंगम चक्र झंझा के बनाये,
रश्मि विद्युत् ले प्रलय-रथ पर भले तुम श्रान्त आये,
पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन,
छांह से भर प्राण उन्मन,
तम-जलधि में नेह का मोती
रचूंगी सीप सी मैं!

धूप-सा तन दीप सी मैं!