भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तजौ मन, हरि-बिमुखनि को संग / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} Category:पद <poem>तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग। जि…)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
[[Category:पद]]
 
[[Category:पद]]
<poem>तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग।
+
<poem>
 +
तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग।
 
जिनकै संग कुमति उपजति है, परत भजन में भंग।
 
जिनकै संग कुमति उपजति है, परत भजन में भंग।
 
कहा होत पय पान कराएं, बिष नही तजत भुजंग।
 
कहा होत पय पान कराएं, बिष नही तजत भुजंग।
पंक्ति 11: पंक्ति 12:
 
गज कौं कहा सरित अन्हवाएं, बहुरि धरै वह ढंग।
 
गज कौं कहा सरित अन्हवाएं, बहुरि धरै वह ढंग।
 
पाहन पतित बान नहिं बेधत, रीतौ करत निषंग।
 
पाहन पतित बान नहिं बेधत, रीतौ करत निषंग।
सूरदास कारी कमरि पै, चढत न दूजौ रंग।</poem>
+
सूरदास कारी कमरि पै, चढत न दूजौ रंग।
 +
</poem>

15:32, 23 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

तजौ मन, हरि बिमुखनि कौ संग।
जिनकै संग कुमति उपजति है, परत भजन में भंग।
कहा होत पय पान कराएं, बिष नही तजत भुजंग।
कागहिं कहा कपूर चुगाएं, स्वान न्हवाएं गंग।
खर कौ कहा अरगजा-लेपन, मरकट भूषण अंग।
गज कौं कहा सरित अन्हवाएं, बहुरि धरै वह ढंग।
पाहन पतित बान नहिं बेधत, रीतौ करत निषंग।
सूरदास कारी कमरि पै, चढत न दूजौ रंग।