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== मैं दीप जलाता हूँ उर में ==
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मधु गीति सं.  ५६७
  
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रचना दि.  १६ अक्टूवर, २००९  ( दीपावली की पूर्व संध्या) 
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मैं दीप जलाता हूँ उर में, मैं राग जगाता हूँ सुर में; 
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तुम शाश्वत दीप जलादो ना,  तुम निर्झर सुर में गा दो ना.
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मेरी दीवाली तुम में है, मेरे गोवर्धन तुम ही हो; 
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मेरी लक्ष्मी पूजा तुम हो, मेरे गणेश तुम ही तो हो. 
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तुम अभिनव नट नागर प्रभु हो,  तुम नित्य सनातन चेतन हो;
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तुम ओजस्वी आनन्द अनंत, तुम तेजस्वी त्रैलोक्य प्रवृत.
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मैं तुम्हरा ही तो उर दीपक, तुम ही तो मेरे सुर प्रेरक;
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तव कृपा कणों की मैं ज्योति, तुम मम जीवन की चिर ज्योति.
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तुमरे दीपक हैं सब उर में, तुमरे ही सुर सबके उर में;
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मैं गा देता तुमरे सुर में, सब सुन लेते 'मधु' से उर में.
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गोपाल बघेल 'मधु'
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टोरंटो, ओंटारियो, कनाडा
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GPBaghel@gmail.com
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23:45, 23 अक्टूबर 2009 का अवतरण

== मैं दीप जलाता हूँ उर में ==
 
मधु गीति सं. ५६७

रचना दि. १६ अक्टूवर, २००९ ( दीपावली की पूर्व संध्या)
 

मैं दीप जलाता हूँ उर में, मैं राग जगाता हूँ सुर में;

तुम शाश्वत दीप जलादो ना, तुम निर्झर सुर में गा दो ना.
 

मेरी दीवाली तुम में है, मेरे गोवर्धन तुम ही हो;

मेरी लक्ष्मी पूजा तुम हो, मेरे गणेश तुम ही तो हो.
 
 
तुम अभिनव नट नागर प्रभु हो, तुम नित्य सनातन चेतन हो;

तुम ओजस्वी आनन्द अनंत, तुम तेजस्वी त्रैलोक्य प्रवृत.
 

मैं तुम्हरा ही तो उर दीपक, तुम ही तो मेरे सुर प्रेरक;

तव कृपा कणों की मैं ज्योति, तुम मम जीवन की चिर ज्योति.
 

तुमरे दीपक हैं सब उर में, तुमरे ही सुर सबके उर में;

मैं गा देता तुमरे सुर में, सब सुन लेते 'मधु' से उर में.
 

गोपाल बघेल 'मधु'

टोरंटो, ओंटारियो, कनाडा

GPBaghel@gmail.com

www.AnandaAnubhuti.com