भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अवसर / राजीव रंजन प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>तुम्हारे प…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
08:51, 24 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
तुम्हारे पास अवसर है
खींच लो पकड़ कर पैर मेरे
मुँह के बल गिरूंगा, हद से हद और क्या होगा?
तुम मत चूको इस अवसर को
कि तुम्हें समझने का
यह अवसर नहीं जाने देना चाहता
कि तुम्हारी अप्रत्यक्ष मुस्कुराहट
और सारी शुभचिंताओं के अर्थ निकाल लेना चाहता हूँ
लेकिन धीरे-धीरे नीला समंदर सोख कर
जब आसमान काला हो जायेगा
तब क्या रोक सकोगे विप्लव को?
अवसर मत चूको
मुझे अवसर ही मत दो
या कि सावधान हो जाओ...
मैं कंकड़-कंकड़ कर
मटके से पानी पी कर दिखला दूँगा
मैं दिखला दूँगा कदम चाँद पर अपने रख कर
लाख निशाने पर होगी मेरी नन्ही सी दुनिया
आसमान की फुनगी पर
मैं भी टांगूँगा अपना घर..
२४.०२.१९९८