भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"व्रजमंडल आनंद भयो / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: कवि: सूरदास Category:कविताएँ Category:सूरदास व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री म...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कवि: [[सूरदास]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:सूरदास]]
+
|रचनाकार=सूरदास
 
+
}}
 +
[[Category:पद]]
  
 +
<poem>
 
व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री मोहन लाल।
 
व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री मोहन लाल।
 
 
ब्रज सुंदरि चलि भेंट लें हाथन कंचन थार॥
 
ब्रज सुंदरि चलि भेंट लें हाथन कंचन थार॥
 
 
जाय जुरि नंदराय के बंदनवार बंधाय।
 
जाय जुरि नंदराय के बंदनवार बंधाय।
 
 
कुंकुम के दिये साथीये सो हरि मंगल गाय॥
 
कुंकुम के दिये साथीये सो हरि मंगल गाय॥
 
 
कान्ह कुंवर देखन चले हरखित होत अपार।
 
कान्ह कुंवर देखन चले हरखित होत अपार।
 
 
देख देख व्रज सुंदर अपनों तन मन वार॥
 
देख देख व्रज सुंदर अपनों तन मन वार॥
 
 
जसुमति लेत बुलाय के अंबर दिये पहराय।
 
जसुमति लेत बुलाय के अंबर दिये पहराय।
 
 
आभूषण बहु भांति के दिये सबन मनभाय॥
 
आभूषण बहु भांति के दिये सबन मनभाय॥
 
 
दे आशीष घर को चली, चिरजियो कुंवर कन्हाई।
 
दे आशीष घर को चली, चिरजियो कुंवर कन्हाई।
 
 
सूर श्याम विनती करी, नंदराय मन भाय॥
 
सूर श्याम विनती करी, नंदराय मन भाय॥
 +
</poem>

16:24, 24 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री मोहन लाल।
ब्रज सुंदरि चलि भेंट लें हाथन कंचन थार॥
जाय जुरि नंदराय के बंदनवार बंधाय।
कुंकुम के दिये साथीये सो हरि मंगल गाय॥
कान्ह कुंवर देखन चले हरखित होत अपार।
देख देख व्रज सुंदर अपनों तन मन वार॥
जसुमति लेत बुलाय के अंबर दिये पहराय।
आभूषण बहु भांति के दिये सबन मनभाय॥
दे आशीष घर को चली, चिरजियो कुंवर कन्हाई।
सूर श्याम विनती करी, नंदराय मन भाय॥