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"व्रजमंडल आनंद भयो / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री मोहन लाल। | व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री मोहन लाल। | ||
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ब्रज सुंदरि चलि भेंट लें हाथन कंचन थार॥ | ब्रज सुंदरि चलि भेंट लें हाथन कंचन थार॥ | ||
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जाय जुरि नंदराय के बंदनवार बंधाय। | जाय जुरि नंदराय के बंदनवार बंधाय। | ||
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कुंकुम के दिये साथीये सो हरि मंगल गाय॥ | कुंकुम के दिये साथीये सो हरि मंगल गाय॥ | ||
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कान्ह कुंवर देखन चले हरखित होत अपार। | कान्ह कुंवर देखन चले हरखित होत अपार। | ||
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देख देख व्रज सुंदर अपनों तन मन वार॥ | देख देख व्रज सुंदर अपनों तन मन वार॥ | ||
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जसुमति लेत बुलाय के अंबर दिये पहराय। | जसुमति लेत बुलाय के अंबर दिये पहराय। | ||
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आभूषण बहु भांति के दिये सबन मनभाय॥ | आभूषण बहु भांति के दिये सबन मनभाय॥ | ||
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दे आशीष घर को चली, चिरजियो कुंवर कन्हाई। | दे आशीष घर को चली, चिरजियो कुंवर कन्हाई। | ||
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सूर श्याम विनती करी, नंदराय मन भाय॥ | सूर श्याम विनती करी, नंदराय मन भाय॥ | ||
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16:24, 24 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
व्रजमंडल आनंद भयो प्रगटे श्री मोहन लाल।
ब्रज सुंदरि चलि भेंट लें हाथन कंचन थार॥
जाय जुरि नंदराय के बंदनवार बंधाय।
कुंकुम के दिये साथीये सो हरि मंगल गाय॥
कान्ह कुंवर देखन चले हरखित होत अपार।
देख देख व्रज सुंदर अपनों तन मन वार॥
जसुमति लेत बुलाय के अंबर दिये पहराय।
आभूषण बहु भांति के दिये सबन मनभाय॥
दे आशीष घर को चली, चिरजियो कुंवर कन्हाई।
सूर श्याम विनती करी, नंदराय मन भाय॥