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"जो मुखरित कर जाती थीं / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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मेरा नीरव आवाहन, | मेरा नीरव आवाहन, | ||
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थिरकन अपनी पुतली की | थिरकन अपनी पुतली की | ||
भारी पलकों में बाँधी | भारी पलकों में बाँधी |
20:50, 24 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
जो मुखरित कर जाती थीं
मेरा नीरव आवाहन,
मैं नें दुर्बल प्राणों की
वह आज सुला दी कंपन!
थिरकन अपनी पुतली की
भारी पलकों में बाँधी
निस्पंद पड़ी हैं आँखें
बरसाने वाली आँधी!
जिसके निष्फल जीवन नें
जल जल कर देखी राहें
निर्वाण हुआ है देखो
वह दीप लुटा कर चाहें!
निर्घोष घटाओं में छिप
तड़पन चपला सी सोती
झंझा के उन्मादों में
घुलती जाती बेहोशी!
करुणामय को भाता है
तम के परदों में आना
हे नभ की दीपावलियों!
तुम पल भर को बुझ जाना!