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"कल और आज / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=हज़ार-हज़ार बाहों वाली / नागार्जुन
 
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अभी कल तक
 
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गालियॉं देती तुम्‍हें
 
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हताश खेतिहर,
 
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अभी कल तक
 
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धूल में नहाते थे
 
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गोरैयों के झुंड,
 
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अभी कल तक  
 
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पथराई हुई थ‍ी
 
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धनहर खेतों की माटी,
 
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अभी कल तक
 
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धरती की कोख में  
 
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दुबके पेड़ थे मेंढक,
 
दुबके पेड़ थे मेंढक,
 
 
अभी कल तक
 
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उदास और बदरंग था आसमान!
 
उदास और बदरंग था आसमान!
 
  
 
और आज
 
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ऊपर-ही-ऊपर तन गए हैं  
 
ऊपर-ही-ऊपर तन गए हैं  
 
 
तुम्‍हारे तंबू,
 
तुम्‍हारे तंबू,
 
 
और आज  
 
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छमका रही है पावस रानी
 
छमका रही है पावस रानी
 
 
बूँदा-बूँदियों की अपनी पायल,
 
बूँदा-बूँदियों की अपनी पायल,
 
 
और आज
 
और आज
 
 
चालू हो गई है
 
चालू हो गई है
 
 
झींगुरो की शहनाई अविराम,
 
झींगुरो की शहनाई अविराम,
 
 
और आज  
 
और आज  
 
 
ज़ोरों से कूक पड़े  
 
ज़ोरों से कूक पड़े  
 
 
नाचते थिरकते मोर,
 
नाचते थिरकते मोर,
 
 
और आज
 
और आज
 
 
आ गई वापस जान
 
आ गई वापस जान
 
 
दूब की झुलसी शिरायों के अंदर,
 
दूब की झुलसी शिरायों के अंदर,
 
 
और आज बिदा हुआ चुपचाप ग्रीष्‍म
 
और आज बिदा हुआ चुपचाप ग्रीष्‍म
 
 
समेटकर अपने लाव-लश्‍कर।
 
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22:07, 24 अक्टूबर 2009 का अवतरण

अभी कल तक
गालियॉं देती तुम्‍हें
हताश खेतिहर,
अभी कल तक
धूल में नहाते थे
गोरैयों के झुंड,
अभी कल तक
पथराई हुई थ‍ी
धनहर खेतों की माटी,
अभी कल तक
धरती की कोख में
दुबके पेड़ थे मेंढक,
अभी कल तक
उदास और बदरंग था आसमान!

और आज
ऊपर-ही-ऊपर तन गए हैं
तुम्‍हारे तंबू,
और आज
छमका रही है पावस रानी
बूँदा-बूँदियों की अपनी पायल,
और आज
चालू हो गई है
झींगुरो की शहनाई अविराम,
और आज
ज़ोरों से कूक पड़े
नाचते थिरकते मोर,
और आज
आ गई वापस जान
दूब की झुलसी शिरायों के अंदर,
और आज बिदा हुआ चुपचाप ग्रीष्‍म
समेटकर अपने लाव-लश्‍कर।