"कालिदास / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
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− | कालिदास! सच-सच बतलाना | + | {{KKCatKavita}} |
− | इन्दुमती के मृत्युशोक से | + | <poem> |
− | अज रोया या तुम रोये थे? | + | कालिदास! सच-सच बतलाना |
− | कालिदास! सच-सच बतलाना! | + | इन्दुमती के मृत्युशोक से |
+ | अज रोया या तुम रोये थे? | ||
+ | कालिदास! सच-सच बतलाना! | ||
− | शिवजी की तीसरी आँख से | + | शिवजी की तीसरी आँख से |
− | निकली हुई महाज्वाला में | + | निकली हुई महाज्वाला में |
− | घृत-मिश्रित सूखी समिधा-सम | + | घृत-मिश्रित सूखी समिधा-सम |
− | कामदेव जब भस्म हो गया | + | कामदेव जब भस्म हो गया |
− | रति का क्रंदन सुन आँसू से | + | रति का क्रंदन सुन आँसू से |
− | तुमने ही तो दृग धोये थे | + | तुमने ही तो दृग धोये थे |
− | कालिदास! सच-सच बतलाना | + | कालिदास! सच-सच बतलाना |
− | रति रोयी या तुम रोये थे? | + | रति रोयी या तुम रोये थे? |
− | वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका | + | वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका |
− | प्रथम दिवस आषाढ़ मास का | + | प्रथम दिवस आषाढ़ मास का |
− | देख गगन में श्याम घन-घटा | + | देख गगन में श्याम घन-घटा |
− | विधुर यक्ष का मन जब उचटा | + | विधुर यक्ष का मन जब उचटा |
− | खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर | + | खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर |
− | चित्रकूट से सुभग शिखर पर | + | चित्रकूट से सुभग शिखर पर |
− | उस बेचारे ने भेजा था | + | उस बेचारे ने भेजा था |
− | जिनके ही द्वारा संदेशा | + | जिनके ही द्वारा संदेशा |
− | उन पुष्करावर्त मेघों का | + | उन पुष्करावर्त मेघों का |
− | साथी बनकर उड़ने वाले | + | साथी बनकर उड़ने वाले |
− | कालिदास! सच-सच बतलाना | + | कालिदास! सच-सच बतलाना |
− | पर पीड़ा से पूर-पूर हो | + | पर पीड़ा से पूर-पूर हो |
− | थक-थककर औ' चूर-चूर हो | + | थक-थककर औ' चूर-चूर हो |
− | अमल-धवल गिरि के शिखरों पर | + | अमल-धवल गिरि के शिखरों पर |
− | प्रियवर! तुम कब तक सोये थे? | + | प्रियवर! तुम कब तक सोये थे? |
− | रोया यक्ष कि तुम रोये थे! | + | रोया यक्ष कि तुम रोये थे! |
− | कालिदास! सच-सच बतलाना!< | + | कालिदास! सच-सच बतलाना! |
+ | </poem> |
22:10, 24 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
कालिदास! सच-सच बतलाना
इन्दुमती के मृत्युशोक से
अज रोया या तुम रोये थे?
कालिदास! सच-सच बतलाना!
शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महाज्वाला में
घृत-मिश्रित सूखी समिधा-सम
कामदेव जब भस्म हो गया
रति का क्रंदन सुन आँसू से
तुमने ही तो दृग धोये थे
कालिदास! सच-सच बतलाना
रति रोयी या तुम रोये थे?
वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
देख गगन में श्याम घन-घटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर
चित्रकूट से सुभग शिखर पर
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके ही द्वारा संदेशा
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बनकर उड़ने वाले
कालिदास! सच-सच बतलाना
पर पीड़ा से पूर-पूर हो
थक-थककर औ' चूर-चूर हो
अमल-धवल गिरि के शिखरों पर
प्रियवर! तुम कब तक सोये थे?
रोया यक्ष कि तुम रोये थे!
कालिदास! सच-सच बतलाना!