भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
814 bytes removed,
17:10, 24 अक्टूबर 2009
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक: '''दीपावली परसाई जी की बात <br> '''रचनाकार:''' [[शिवप्रसाद जोशीनरेश सक्सेना]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
अब मैं तुम्हें नहीं छोडूंगीकाट लूंगी तुम्हारी उंगलियाँखा जाऊंगी तुम्हेंसमझे तुमअपने सिर से मेरा सिर न टकराओये बताओ कब आओगेकहाँ हो तुमऔर ये हँस क्यों रहे हो बेकार पैंतालिस साल पहले, जबलपुर मेंतुमने एक उपहार भेजा अच्छा लगातुमने एक पोशाक भेजी अच्छी लगीपरसाई जी के पीछे लगभग भागते हुए लेकिन तुम इतनी दूर क्यों होमैंने सुनाई अपनी कविता इतने पास हो और फ़ौरन क्यों नहीं चले आतेपूछा ये कम्प्यूटर तुम्हारा ही तो क्या इस पर ईनाम मिल सकता हैजहाज़ के टायर नहीं होतेऔर वे चलते हैं ज़मीन "अच्छी कविता परमेरी गुड़िया का आज जन्मदिन हैगणेश को सारे लड्डू न खिलाओ माँमुझे सज़ा भी खाना मिल सकती है" और अब बाबा से तो सुनकर मैं नहीं करूंगी बातसन्न रह गया बस यह कहकर हटती हैक्योंकि उस वक़्त वह छात्रों की एक कविता प्रतियोगिता बेटीकी अध्यक्षता करने जा रहे थे पिता आज चारों तरफ़ सुनता हूँ वाह-वाह-वाह-वाह, फिर से इंटरनेट टेलीफ़ोनी करती हुईएक अचरज मंच और उलार में निहारती हुईमीडिया के लकदक दोस्त इतने क़रीब उस दुष्ट मनुष्य कोलेते हैं हाथों-हाथ और जो है इतना दूरसज़ा जैसी कोई सख़्त बात तक नहीं कहता मैं गई फुलझड़ी जलानेमैं गई अनार फोड़नेतो शक होने लगता है बाबा इनकी रंगतों में मेरा अफ़सोस देखनामैं किससे कहूँ मन परसाई जी की बाततुम्हें मैं छोड़ूंगी पर नहीं आना तुम।<अपनी कविता पर/pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader