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स्मृति / महादेवी वर्मा

No change in size, 03:44, 25 अक्टूबर 2009
तुम भाग्य का वरदान हो;
टूटी हुई झंकार हो
रति गत काल की मुस्कान हो।
उस लोक का संदेश हो
तुम हो सुधा धारा सदा
सूखे हुए अनुराग को;
तुम जन्म देती हो सखीसजनि!
आसक्ति को वैराग्य को।
तेरे बिना संसार में
मानव हॄदय स्मशान श्मशान है;
तेरे बिना हे संगिनी!
अनुराग का क्या मान है?
</poem>
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