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[[Category:कविताएँ]][[Category:नागार्जुन]]{{KKCatKavita}}<Poempoem>
बरफ़ पड़ी है
सर्वश्वेत पार्वती प्रकृति निस्तब्ध खड़ी है
चली गईं हैं दूर-दूर तक
नीचे-ऊपर बहुत दूर तक
सूनी-सूनी सड़कें <br>
मैं जिसमें ठहरा हूँ वह भी छोटा-सा बंगला है—
पिछवाड़े का कमरा जिसमें एक मात्र जंगला है