"बरफ पड़ी है / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=नागार्जुन | + | |रचनाकार=नागार्जुन |
− | + | ||
}} | }} | ||
− | < | + | {{KKCatKavita}} |
+ | <poem> | ||
बरफ़ पड़ी है | बरफ़ पड़ी है | ||
सर्वश्वेत पार्वती प्रकृति निस्तब्ध खड़ी है | सर्वश्वेत पार्वती प्रकृति निस्तब्ध खड़ी है | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
चली गईं हैं दूर-दूर तक | चली गईं हैं दूर-दूर तक | ||
नीचे-ऊपर बहुत दूर तक | नीचे-ऊपर बहुत दूर तक | ||
− | सूनी-सूनी सड़कें | + | सूनी-सूनी सड़कें |
मैं जिसमें ठहरा हूँ वह भी छोटा-सा बंगला है— | मैं जिसमें ठहरा हूँ वह भी छोटा-सा बंगला है— | ||
पिछवाड़े का कमरा जिसमें एक मात्र जंगला है | पिछवाड़े का कमरा जिसमें एक मात्र जंगला है |
12:14, 25 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
बरफ़ पड़ी है
सर्वश्वेत पार्वती प्रकृति निस्तब्ध खड़ी है
सजे-सजाए बंगले होंगे
सौ दो सौ चाहे दो-एक हज़ार
बस मुठ्ठी-भर लोगों द्वारा यह नगण्य श्रंगार
देवदारूमय सहस्रबाहु चिर-तरूण हिमाचल कर सकता है क्यों कर अंगीकार
चहल-पहल का नाम नहीं है
बरफ़-बरफ़ है काम नहीं है
दप-दप उजली साँप सरीखी सरल और बंकिम भंगी में—
चली गईं हैं दूर-दूर तक
नीचे-ऊपर बहुत दूर तक
सूनी-सूनी सड़कें
मैं जिसमें ठहरा हूँ वह भी छोटा-सा बंगला है—
पिछवाड़े का कमरा जिसमें एक मात्र जंगला है
सुबह-सुबह ही
मैने इसको खोल लिया है
देख रहा हूँ बरफ़ पड़ रही कैसे
बरस रहे हैं आसमान से धुनी रूई के फाहे
या कि विमानों में भर-भर कर यक्ष और किन्नर बरसाते
कास-कुसुम अविराम
ढके जा रहे देवदार की हरियाली को अरे दूधिया झाग
ठिठुर रहीं उंगलियाँ मुझे तो याद आ रही आग
गरम-गरम ऊनी लिबास से लैस
देव देवियाँ देख रही होंगी अवश्य हिमपात
शीशामढ़ी खिड़कियों के नज़दीक बैठकर
सिमटे-सिकुड़े नौकर-चाकर चाय बनाते होंगे
ठंड कड़ी है
सर्वश्वेत पार्वती-प्रकृति निस्तब्ध खड़ी है
बरफ़ पड़ी है