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"शायद कोहरे में न भी दीखे / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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वो गया
 
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वो गया
 
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बिल्कुल ही चला गया
 
बिल्कुल ही चला गया
 
 
पहाड़ की ओट में
 
पहाड़ की ओट में
 
  
 
लाल-लाल गोला सूरज का
 
लाल-लाल गोला सूरज का
 
 
शायद सुबह-सुबह
 
शायद सुबह-सुबह
 
 
दीख जाए पूरब में
 
दीख जाए पूरब में
 
 
शायद कोहरे में न भी दीखे !
 
शायद कोहरे में न भी दीखे !
 
 
फ़िलहाल वो
 
फ़िलहाल वो
 
 
डूबता-डूबता दीख गया !
 
डूबता-डूबता दीख गया !
 
 
दिनान्त का आरक्त भास्कर
 
दिनान्त का आरक्त भास्कर
 
 
जेठ के उजले पाख की नौवीं साँझ
 
जेठ के उजले पाख की नौवीं साँझ
 
 
पसारेगी अपना आँचल अभी-अभी
 
पसारेगी अपना आँचल अभी-अभी
 
 
हिम्मत न होगी तमिस्रा को
 
हिम्मत न होगी तमिस्रा को
 
 
धरती पर झाँकने की !
 
धरती पर झाँकने की !
 
 
सहमी-सहमी-सी वो प्रतीक्षा करेगी
 
सहमी-सहमी-सी वो प्रतीक्षा करेगी
 
 
उधर, उस ओर
 
उधर, उस ओर
 
 
खण्डहर की ओट में !
 
खण्डहर की ओट में !
 
 
जी हाँ, परित्यक्त राजधानी के
 
जी हाँ, परित्यक्त राजधानी के
 
 
खण्डहरोंवाले उन उदास झुरमुटों में
 
खण्डहरोंवाले उन उदास झुरमुटों में
 
 
तमिस्रा करेगी इन्तज़ार
 
तमिस्रा करेगी इन्तज़ार
 
 
दो बजे रात तक
 
दो बजे रात तक
 
 
यानि तिथिक्रम के हिसाब से,
 
यानि तिथिक्रम के हिसाब से,
 
 
आधी धुली चाँदनी
 
आधी धुली चाँदनी
 
 
तब तक खिली रहेगी
 
तब तक खिली रहेगी
 
 
फिर, तमिस्रा का नम्बर आएगा !
 
फिर, तमिस्रा का नम्बर आएगा !
 
 
यानि अन्धकार का !
 
यानि अन्धकार का !
  
  
1984 में रचित
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'''1984 में रचित

12:41, 25 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

वो गया
वो गया
बिल्कुल ही चला गया
पहाड़ की ओट में

लाल-लाल गोला सूरज का
शायद सुबह-सुबह
दीख जाए पूरब में
शायद कोहरे में न भी दीखे !
फ़िलहाल वो
डूबता-डूबता दीख गया !
दिनान्त का आरक्त भास्कर
जेठ के उजले पाख की नौवीं साँझ
पसारेगी अपना आँचल अभी-अभी
हिम्मत न होगी तमिस्रा को
धरती पर झाँकने की !
सहमी-सहमी-सी वो प्रतीक्षा करेगी
उधर, उस ओर
खण्डहर की ओट में !
जी हाँ, परित्यक्त राजधानी के
खण्डहरोंवाले उन उदास झुरमुटों में
तमिस्रा करेगी इन्तज़ार
दो बजे रात तक
यानि तिथिक्रम के हिसाब से,
आधी धुली चाँदनी
तब तक खिली रहेगी
फिर, तमिस्रा का नम्बर आएगा !
यानि अन्धकार का !


1984 में रचित