भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दूल्ह राम / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: दूल्ह राम, सीय दुलही री।<br /> घन-दामिन-बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नख-शिख ...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
दूल्ह राम, सीय दुलही री।<br />
+
{{KKGlobal}}
घन-दामिन-बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नख-शिख निबही री॥<br />
+
{{KKRachna
ब्याह-विभूषन-बसन-बिभूषित, सखि-अवली लखि ठगि सी रही री॥<br />
+
|रचनाकार=तुलसीदास
जीवन-जनम-लाहु लोचन फल है इतनोइ, लह्यो आजु सही री॥<br />
+
}}
सुखमा-सुरभि सिंगार-छीर दुहि, मयन अमिय मय कियो है दही री॥<br />
+
{{KKCatKavita}}
मथि माखन सिय राम सँवारे, सकल भुवन छवि मनहुँ मही री॥<br />
+
<poem>
तुलसिदास जोरी देखत सुख सोभा, अतुल न जाति कही री॥<br />
+
दूल्ह राम, सीय दुलही री।
रूप रासि बिरची बिरंची मनो, सिला लवनि रति काम लही री॥<br />
+
घन-दामिन-बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नख-शिख निबही री॥
 +
ब्याह-विभूषन-बसन-बिभूषित, सखि-अवली लखि ठगि सी रही री॥
 +
जीवन-जनम-लाहु लोचन फल है इतनोइ, लह्यो आजु सही री॥
 +
सुखमा-सुरभि सिंगार-छीर दुहि, मयन अमिय मय कियो है दही री॥
 +
मथि माखन सिय राम सँवारे, सकल भुवन छवि मनहुँ मही री॥
 +
तुलसिदास जोरी देखत सुख सोभा, अतुल न जाति कही री॥
 +
रूप रासि बिरची बिरंची मनो, सिला लवनि रति काम लही री॥
 +
</poem>

22:30, 26 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

दूल्ह राम, सीय दुलही री।
घन-दामिन-बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नख-शिख निबही री॥
ब्याह-विभूषन-बसन-बिभूषित, सखि-अवली लखि ठगि सी रही री॥
जीवन-जनम-लाहु लोचन फल है इतनोइ, लह्यो आजु सही री॥
सुखमा-सुरभि सिंगार-छीर दुहि, मयन अमिय मय कियो है दही री॥
मथि माखन सिय राम सँवारे, सकल भुवन छवि मनहुँ मही री॥
तुलसिदास जोरी देखत सुख सोभा, अतुल न जाति कही री॥
रूप रासि बिरची बिरंची मनो, सिला लवनि रति काम लही री॥