{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=तुलसीदास}}{{KKCatKavita}}<poem>दूल्ह राम, सीय दुलही री।<br />घन-दामिन-बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नख-शिख निबही री॥<br />ब्याह-विभूषन-बसन-बिभूषित, सखि-अवली लखि ठगि सी रही री॥<br /> जीवन-जनम-लाहु लोचन फल है इतनोइ, लह्यो आजु सही री॥<br /> सुखमा-सुरभि सिंगार-छीर दुहि, मयन अमिय मय कियो है दही री॥<br />मथि माखन सिय राम सँवारे, सकल भुवन छवि मनहुँ मही री॥<br />तुलसिदास जोरी देखत सुख सोभा, अतुल न जाति कही री॥<br /> रूप रासि बिरची बिरंची मनो, सिला लवनि रति काम लही री॥<br /poem>