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"मैं हरि, पतित पावन सुने / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर
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मैं पतित, तुम पतित-पावन, दोउ बानक बने॥ | मैं पतित, तुम पतित-पावन, दोउ बानक बने॥ | ||
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जानि नाम अजानि लीन्हें नरक जमपुर मने। | जानि नाम अजानि लीन्हें नरक जमपुर मने। | ||
दास तुलसी सरन आयो राखिये अपने॥ | दास तुलसी सरन आयो राखिये अपने॥ | ||
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23:37, 26 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
मैं हरि, पतित पावन सुने।
मैं पतित, तुम पतित-पावन, दोउ बानक बने॥
ब्याध गनिक अगज अजामिल, साखि निगमनि भने।
और अधम अनेक तारे, जात कापै गने॥
जानि नाम अजानि लीन्हें नरक जमपुर मने।
दास तुलसी सरन आयो राखिये अपने॥