"आजादों का गीत / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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::झंडा है बादल! | ::झंडा है बादल! | ||
+ | चांदी, सोने, हीरे, मोती | ||
+ | ::का हाथों में दंड, | ||
+ | चिन्ह कभी का अधिकारों का | ||
+ | ::अब केवल पाखंड, | ||
+ | ::::समझ गई अब सारी जगती | ||
+ | ::::::क्या सिंगार, क्या सत्य, | ||
+ | कर्मठ हाथों के अन्दर ही | ||
+ | ::बसता तेज प्रचंड; | ||
+ | ::::जिधर उठेगा महा सृष्टि | ||
+ | ::::::होगी या महा प्रलय, | ||
+ | ::::विकल हमारे राज दंड में | ||
+ | ::::::साठ कोटि भुजबल! | ||
+ | ::::हम ऐसे आज़ाद, हमारा | ||
+ | ::::::झंडा है बादल! | ||
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00:24, 28 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
हम ऐसे आज़ाद, हमारा
झंडा है बादल!
चांदी, सोने, हीरे, मोती
से सजतीं गुड़ियाँ,
इनसे आतंकित करने की
बीत गई धड़ियाँ,
इनसे सज-धज बैठा करते
जो, हैं कठपुतले।
हमने तोड़ अभी फैंकी हैं
बेड़ी-हथकड़ियाँ;
परम्परा पुरखों की हमने
जाग्रत की फिर से,
उठा शीश पर हमने रक्खा
हिम किरीट उज्जवल!
हम ऐसे आज़ाद, हमारा
झंडा है बादल!
चांदी, सोने, हीरे, मोती
से सज सिंहासन,
जो बैठा करते थे उनका
खत्म हुआ शासन,
उनका वह सामान अजायब-
घर की अब शोभा,
उनका वह इतिहास महज
इतिहासों का वर्णन;
नहीं जिसे छू कभी सकेंगे
शाह लुटेरे भी,
तख़्त हमारा भारत माँ की
गोदी का शाद्वल!
हम ऐसे आज़ाद, हमारा
झंडा है बादल!
चांदी, सोने, हीरे, मोती
से सजवा छाते
जो अपने सिर पर तनवाते
थे, अब शरमाते,
फूल-कली बरसाने वाली
दूर गई दुनिया,
वज्रों के वाहन अम्बर में,
निर्भय घहराते,
इन्द्रायुध भी एक बार जो
हिम्मत से औड़े,
छ्त्र हमारा निर्मित करते
साठ कोटि करतल।
हम ऐसे आज़ाद, हमारा
झंडा है बादल!
चांदी, सोने, हीरे, मोती
का हाथों में दंड,
चिन्ह कभी का अधिकारों का
अब केवल पाखंड,
समझ गई अब सारी जगती
क्या सिंगार, क्या सत्य,
कर्मठ हाथों के अन्दर ही
बसता तेज प्रचंड;
जिधर उठेगा महा सृष्टि
होगी या महा प्रलय,
विकल हमारे राज दंड में
साठ कोटि भुजबल!
हम ऐसे आज़ाद, हमारा
झंडा है बादल!