भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"असन्तोष / मैथिलीशरण गुप्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मैथिलीशरण गुप्त |संग्रह=झंकार / मैथिलीशरण गुप्त }} नही...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=झंकार / मैथिलीशरण गुप्त
 
|संग्रह=झंकार / मैथिलीशरण गुप्त
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।<br>
 
नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।<br>
 
मिथ्या मेरा घोष नहीं।<br>
 
मिथ्या मेरा घोष नहीं।<br>

01:15, 28 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।
मिथ्या मेरा घोष नहीं।
वह देता जाता है ज्यों ज्यों,
लोभ वृद्धि पाता है त्यों त्यों,
नहीं वृत्ति-घातक मैं,
उस घन का चातक मैं,
जिसमें रस है रोष नहीं।
नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।
पाकर वैसा देने वाला—
शान्त रहे क्या लेने वाला ?
मेरा मन न रुकेगा,
उसका मन न चुकेगा,
क्या वह अक्षय-कोष नहीं ?
नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।

माँगू क्यों न उसी को अब,
एक साथ पाजाऊँ सब,
पूरा दानी जब हो
कोर-कसर क्यों तब हो ?
मेरा कोई दोष नहीं।
नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।