"सुरा समर्थन / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर
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भारतीय इतिहास का, कीजे अनुसंधान | भारतीय इतिहास का, कीजे अनुसंधान | ||
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देव-दनुज-किन्नर सभी, किया सोमरस पान | देव-दनुज-किन्नर सभी, किया सोमरस पान | ||
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किया सोमरस पान, पियें कवि, लेखक, शायर | किया सोमरस पान, पियें कवि, लेखक, शायर | ||
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जो इससे बच जाये, उसे कहते हैं 'कायर' | जो इससे बच जाये, उसे कहते हैं 'कायर' | ||
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कहँ 'काका', कवि 'बच्चन' ने पीकर दो प्याला | कहँ 'काका', कवि 'बच्चन' ने पीकर दो प्याला | ||
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दो घंटे में लिख डाली, पूरी 'मधुशाला' | दो घंटे में लिख डाली, पूरी 'मधुशाला' | ||
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भेदभाव से मुक्त यह, क्या ऊँचा क्या नीच | भेदभाव से मुक्त यह, क्या ऊँचा क्या नीच | ||
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अहिरावण पीता इसे, पीता था मारीच | अहिरावण पीता इसे, पीता था मारीच | ||
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पीता था मारीच, स्वर्ण- मृग रूप बनाया | पीता था मारीच, स्वर्ण- मृग रूप बनाया | ||
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पीकर के रावण सीता जी को हर लाया | पीकर के रावण सीता जी को हर लाया | ||
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कहँ 'काका' कविराय, सुरा की करो न निंदा | कहँ 'काका' कविराय, सुरा की करो न निंदा | ||
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मधु पीकर के मेघनाद पहुँचा किष्किंधा | मधु पीकर के मेघनाद पहुँचा किष्किंधा | ||
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ठेला हो या जीप हो, अथवा मोटरकार | ठेला हो या जीप हो, अथवा मोटरकार | ||
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ठर्रा पीकर छोड़ दो, अस्सी की रफ़्तार | ठर्रा पीकर छोड़ दो, अस्सी की रफ़्तार | ||
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अस्सी की रफ़्तार, नशे में पुण्य कमाओ | अस्सी की रफ़्तार, नशे में पुण्य कमाओ | ||
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जो आगे आ जाये, स्वर्ग उसको पहुँचाओ | जो आगे आ जाये, स्वर्ग उसको पहुँचाओ | ||
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पकड़ें यदि सार्जेंट, सिपाही ड्यूटी वाले | पकड़ें यदि सार्जेंट, सिपाही ड्यूटी वाले | ||
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लुढ़का दो उनके भी मुँह में, दो चार पियाले | लुढ़का दो उनके भी मुँह में, दो चार पियाले | ||
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पूरी बोतल गटकिये, होय ब्रह्म का ज्ञान | पूरी बोतल गटकिये, होय ब्रह्म का ज्ञान | ||
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नाली की बू, इत्र की खुशबू एक समान | नाली की बू, इत्र की खुशबू एक समान | ||
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खुशबू एक समान, लड़्खड़ाती जब जिह्वा | खुशबू एक समान, लड़्खड़ाती जब जिह्वा | ||
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'डिब्बा' कहना चाहें, निकले मुँह से 'दिब्बा' | 'डिब्बा' कहना चाहें, निकले मुँह से 'दिब्बा' | ||
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कहँ 'काका' कविराय, अर्ध-उन्मीलित अँखियाँ | कहँ 'काका' कविराय, अर्ध-उन्मीलित अँखियाँ | ||
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मुँह से बहती लार, भिनभिनाती हैं मखियाँ | मुँह से बहती लार, भिनभिनाती हैं मखियाँ | ||
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प्रेम-वासना रोग में, सुरा रहे अनुकूल | प्रेम-वासना रोग में, सुरा रहे अनुकूल | ||
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सैंडिल-चप्पल-जूतियां, लगतीं जैसे फूल | सैंडिल-चप्पल-जूतियां, लगतीं जैसे फूल | ||
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लगतीं जैसे फूल, धूल झड़ जाये सिर की | लगतीं जैसे फूल, धूल झड़ जाये सिर की | ||
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बुद्धि शुद्ध हो जाये, खुले अक्कल की खिड़की | बुद्धि शुद्ध हो जाये, खुले अक्कल की खिड़की | ||
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प्रजातंत्र में बिता रहे क्यों जीवन फ़ीका | प्रजातंत्र में बिता रहे क्यों जीवन फ़ीका | ||
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बनो 'पियक्कड़चंद', स्वाद लो आज़ादी का | बनो 'पियक्कड़चंद', स्वाद लो आज़ादी का | ||
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एक बार मद्रास में देखा जोश-ख़रोश | एक बार मद्रास में देखा जोश-ख़रोश | ||
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बीस पियक्कड़ मर गये, तीस हुये बेहोश | बीस पियक्कड़ मर गये, तीस हुये बेहोश | ||
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तीस हुये बेहोश, दवा दी जाने कैसी | तीस हुये बेहोश, दवा दी जाने कैसी | ||
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वे भी सब मर गये, दवाई हो तो ऐसी | वे भी सब मर गये, दवाई हो तो ऐसी | ||
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चीफ़ सिविल सर्जन ने केस कर दिया डिसमिस | चीफ़ सिविल सर्जन ने केस कर दिया डिसमिस | ||
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पोस्ट मार्टम हुआ, पेट में निकली 'वार्निश' | पोस्ट मार्टम हुआ, पेट में निकली 'वार्निश' | ||
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00:23, 29 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
भारतीय इतिहास का, कीजे अनुसंधान
देव-दनुज-किन्नर सभी, किया सोमरस पान
किया सोमरस पान, पियें कवि, लेखक, शायर
जो इससे बच जाये, उसे कहते हैं 'कायर'
कहँ 'काका', कवि 'बच्चन' ने पीकर दो प्याला
दो घंटे में लिख डाली, पूरी 'मधुशाला'
भेदभाव से मुक्त यह, क्या ऊँचा क्या नीच
अहिरावण पीता इसे, पीता था मारीच
पीता था मारीच, स्वर्ण- मृग रूप बनाया
पीकर के रावण सीता जी को हर लाया
कहँ 'काका' कविराय, सुरा की करो न निंदा
मधु पीकर के मेघनाद पहुँचा किष्किंधा
ठेला हो या जीप हो, अथवा मोटरकार
ठर्रा पीकर छोड़ दो, अस्सी की रफ़्तार
अस्सी की रफ़्तार, नशे में पुण्य कमाओ
जो आगे आ जाये, स्वर्ग उसको पहुँचाओ
पकड़ें यदि सार्जेंट, सिपाही ड्यूटी वाले
लुढ़का दो उनके भी मुँह में, दो चार पियाले
पूरी बोतल गटकिये, होय ब्रह्म का ज्ञान
नाली की बू, इत्र की खुशबू एक समान
खुशबू एक समान, लड़्खड़ाती जब जिह्वा
'डिब्बा' कहना चाहें, निकले मुँह से 'दिब्बा'
कहँ 'काका' कविराय, अर्ध-उन्मीलित अँखियाँ
मुँह से बहती लार, भिनभिनाती हैं मखियाँ
प्रेम-वासना रोग में, सुरा रहे अनुकूल
सैंडिल-चप्पल-जूतियां, लगतीं जैसे फूल
लगतीं जैसे फूल, धूल झड़ जाये सिर की
बुद्धि शुद्ध हो जाये, खुले अक्कल की खिड़की
प्रजातंत्र में बिता रहे क्यों जीवन फ़ीका
बनो 'पियक्कड़चंद', स्वाद लो आज़ादी का
एक बार मद्रास में देखा जोश-ख़रोश
बीस पियक्कड़ मर गये, तीस हुये बेहोश
तीस हुये बेहोश, दवा दी जाने कैसी
वे भी सब मर गये, दवाई हो तो ऐसी
चीफ़ सिविल सर्जन ने केस कर दिया डिसमिस
पोस्ट मार्टम हुआ, पेट में निकली 'वार्निश'