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|संग्रह=खिलखिलाहट / काका हाथरसी
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पिछले दिनों<br>
प्रतियोगिता पूरी हुई<br>
तो जूरी के एक सदस्य ने कहा-<br>
::‘देखो भाई,<br>::स्वर्ण गिद्ध तो पुलिस विभाग को जा रहा है<br>::रजत बगुले के लिए<br>::पी.डब्लू.डी<br>::डी.डी.ए.के बराबर आ रहा है<br>::और ऐसा लगता है हमको<br>::काँस्य कउआ मिलेगा एक्साइज या कस्टम को।’<br><br>
निर्णय-प्रक्रिया चल ही रही थी कि<br>
विराट नेताजी ने मेघ-मंद्र स्वर में उचारा-<br>
::‘मेरे हज़ारों मुँह, हजारों हाथ हैं<br>::हज़ारों पेट हैं, हज़ारों ही लात हैं।<br>::नैनं छिंदति पुलिसा-वुलिसा<br>::नैनं दहति संसदा !<br>::नाना विधानि रुपाणि<br>::नाना हथकंडानि च।<br>::ये सब भ्रष्टाचारी मेरे ही स्वरूप हैं<br>::मैं एक हूँ, लेकिन करोड़ों रूप हैं।<br>::अहमपि नजरानम् अहमपि शुकरानम्<br>::अहमपि हकरानम् च जबरानम् सर्वमन्यते।<br>::भ्रष्टाचारी मजिस्ट्रेट<br>::रिश्वतख़ोर थानेदार<br>::इंजीनियर, ओवरसियर<br>::रिश्तेदार-नातेदार<br>::मुझसे ही पैदा हुए, मुझमें ही समाएँगे<br>::पुरस्कार ये सारे मेरे हैं, मेरे ही पास आएँगे।’
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