भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यात्री-1 / सियाराम शरण गुप्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>कैसे पैर ब…)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:09, 30 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

कैसे पैर बढाऊँ मैं?
इस घन गहन विजन के भीतर
मार्ग कहाँ जो जाऊँ मैं?

कुटिल कँटीले झंखाड़ों में
उत्तरीय उड़कर मेरा
उलझ उलझ जाता है, इसको
कहाँ-कहाँ सुलझाऊँ मैं?

कहीं धसी है धरा गर्त में
कहीं चढी है टीलों पर;
मुक्त विहग-सा उड़ जाऊँ जो
पंख कहाँ से लाऊँ मैं?