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रतना फेरी गुथली रतनी खोली आइ। | रतना फेरी गुथली रतनी खोली आइ। | ||
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वखर तै वणजारिआ दूहा रही समाइ॥ | वखर तै वणजारिआ दूहा रही समाइ॥ | ||
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जिन गुणु पलै नानका माणक वणजहि सेइ। | जिन गुणु पलै नानका माणक वणजहि सेइ। | ||
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रतना सार न जागई अंधे वतहिं लोइ॥ | रतना सार न जागई अंधे वतहिं लोइ॥ | ||
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जिसु पियारे सिउ नेहु तिसु आगै मरि चल्लिऐ। | जिसु पियारे सिउ नेहु तिसु आगै मरि चल्लिऐ। | ||
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ध्रिगु जीवण संसार ताकै पाछे जीवणा॥ | ध्रिगु जीवण संसार ताकै पाछे जीवणा॥ | ||
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जे सउ चंदा उगवहि, सूरज चढहि हजार। | जे सउ चंदा उगवहि, सूरज चढहि हजार। | ||
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एते चानण होदिऑं, गुर बिनु घोर अंधार॥ | एते चानण होदिऑं, गुर बिनु घोर अंधार॥ | ||
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जो सिर साईं ना निवै, सो सिर दीजै डारि। | जो सिर साईं ना निवै, सो सिर दीजै डारि। | ||
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जिस पिंजर महिं विरह नहिं, सो पिंजर लै जारि॥ | जिस पिंजर महिं विरह नहिं, सो पिंजर लै जारि॥ | ||
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नानक चिंता मति करहु, चिंता तिसही हेइ। | नानक चिंता मति करहु, चिंता तिसही हेइ। | ||
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जल महि जंत उपाइ अनु, तिन भी रोजी देइ॥ | जल महि जंत उपाइ अनु, तिन भी रोजी देइ॥ | ||
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10:12, 31 अक्टूबर 2009 का अवतरण
रतना फेरी गुथली रतनी खोली आइ।
वखर तै वणजारिआ दूहा रही समाइ॥
जिन गुणु पलै नानका माणक वणजहि सेइ।
रतना सार न जागई अंधे वतहिं लोइ॥
जिसु पियारे सिउ नेहु तिसु आगै मरि चल्लिऐ।
ध्रिगु जीवण संसार ताकै पाछे जीवणा॥
जे सउ चंदा उगवहि, सूरज चढहि हजार।
एते चानण होदिऑं, गुर बिनु घोर अंधार॥
जो सिर साईं ना निवै, सो सिर दीजै डारि।
जिस पिंजर महिं विरह नहिं, सो पिंजर लै जारि॥
नानक चिंता मति करहु, चिंता तिसही हेइ।
जल महि जंत उपाइ अनु, तिन भी रोजी देइ॥